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जंगल की कहानियां--मुंशी प्रेमचंद


बनमानुस की दर्दनाक कहानी मुंशी प्रेम चंद

आज हम तुम्हें एक बनमानुस का हाल सुनाते हैं। सामने जो तसवीर है, उससे तुम्हें मालूम होगा कि बनमानुस न तो पूरा बंदर है, न पूरा आदमी । वह आदमी और बन्दर के बीच में एक जानवर है। मगर वह बड़ा बलवान होता है और आदमियों को बड़ी आसानी से मार डालता है। वह अधिकतर अफ्रीका के जंगल में पाया जाता है।
एक दिन एक शिकारी अफ्रीका के क्लब में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था कि उसका एक दोस्त घबराया हुआ कमरे में आया और बोला--एक हब्शी बहुत दूर से यहाँ आया है और कहता है कि पास के जंगल में एक नर बनमानुस निकला है, जो सिर्फ आदमियों को मार रहा है। शिकारी ने उस हब्शी को बुलाकर पूछ-ताछ की तो मालूम हुआा कि उबांशी जाति के एक आदमी ने उस बनमानुस के जोड़े को मार डाला है। शायद इसी लिए वह आदमियों को मार रहा है। हब्शी ने कहा-साहब ऐसे डीलडौल का बनमानुस कहीं देखने में नहीं आया था। बड़े बड़े जवानों को बात की बात में मार डालता है। ताज्जुब तो यह है कि वह चुन-चुनकर उसी जाति के आदमियों को मारता है। अब तक करीब दस उबांशियों को मार चुका है। शिकारी शेर का शिकार करने आया था, पर उसने दिल में सोचा-यह बनमानुस तो शेर से भी ज्यादा ख़ौफ़नाक है। पहिले इसी को क्‍यों न मारूं ।
दूसरे दिन उसने तड़के ही शिकार का सामान ठीक-ठाक किया और उसी हब्शी को लेकर जंगल की तरफ चल खड़ा हुआ । कई सिपाही भी मौजूद थे । वे भी अपनी छोलदारियाँ और बन्दूकें लेकर चलने को तैयार हो गये । हब्शी राह दिखाता हुआ आगे-आगे चलने लगा।
दिन भर लगातार चलने के बाद वे लोग उबांशियों के गाँव में पहुँचे । रा्सते में बहुत-से जानवर मिले, पर बनमानुस का कहीं निशान तक न मिला। अफ्रीका के सब गाँव करीब-करीब एक ही तरह के होते हैं । गाँव के बीच में उबांशियों के सरदार का झोपड़ा था, चारों ओर बाँसों से घिरा हुआ था। एक बड़े डील-डौल का आदमी कंधे पर बन्दूक रखे झोपड़े के सामने टहल रहा था ।
शिकारियों की खबर पाकर उबांशी सरदार उनसे मिलने आया और फौजी सलाम करके बोला--आाप लोग खूब आये, अब मुझे उम्मीद है कि बनमानुस जरूर मारा जायगा। हम लोगों का तो घर से निकलना मुश्किल हो गया है। शिकारी ने ग़रूर के साथ कहा- हाँ, देखो क्या होता है, आये तो इसी इरादे से हैं।
शिकारियों ने सरदार के झोपड़े के पास ही अपनी छोलदारियाँ लगा दीं और पेट देवता की पूजा करने की फ़िक्र करने लगे कि अचा- नक किसी के कराहने की आवज़ आई जैसे उसका कोई मर गया हो । शिकारी ने पूछा-यह कौन रो रहा है ?
हब्शी ने घबढ़ायी हुई आवाज़ में कहा- हुजूर, यह वही बनमानुस है । दिन भर अपने मु्र्दा जोड़े के पास बैठा रोता है और रात होते ही इधर-उघर घूमने लगता है। न मालूम किस वक्त चुपके गाँव में घुस जाता है और किसी न किसी को मार डालता है। और किसी जाति के आदमी से नहीं बोलता ।
लोग दिन भर के थके-माँदे, भूखे-प्यासे थे । बनमानुस का शिकार करने की किसे सूझती थी। जब लोग खा-पीकर फारिग़ हुए तो सलाह होने लगी कि बनमानुस का शिकार कैसे किया जाय । उबांशी सरदार ने कहा-रात को आप लोग उसे नहीं पा सकते । दिन को ही उसका शिकार हो सकता है।
शिकारियों को भी उसकी सलाह पसन्द आई । सब अपनी-अपनी छोलदारियों में घुस गये और बाहर पहरे का यह बन्दोबस्त कर दिया कि दो-दो घंटे के बाद पहरा बदल दिया जाय । शिकारी थका था, जल्‍दी ही सो गया । लेकिन थोड़ी ही देर सोया था कि उसकी नींद टूट गई और सामने एक परछाईं-सी खड़ी दिखायी दी । उसकी आंखें आग की तरह जल रही थीं। अफ़सर मे फौरन आवाज़ दी--संतरी !
पर कोई जवाब न मिला। न मालूम यह आवाज़ संतरी के कानों तक पहुँची भी या नहीं ।
अफ़सर ने तुरन्त बिजली की बत्ती जलाई। उसका कलेजा सन्न हो गया। सामने छ फीट का बनमानुस खड़ा था और उसके हाथ में संतरी की बन्दूक थी, जिसकी नली बिलकुल टेढ़ी-मेढ़ी हो गई थी । वह शिकारी की ओर आँखें जमाये हुए था; जैसे सोच रहा हो कि इसे मारूं या छोड़ दूँ । उसका डरावना चेहरा देखकर शिकारी की घिग्घी बंध गई, मुंह से आवाज़ तक न निकली ।
अचानक बाहर किसी चीज़ के गिरने का धमाका हुआ। शायद कोई संतरी अंधेरे में ठोकर खाकर गिर पड़ा था। बनमानुस ने झट बन्दूक फेंक दी और उछलकर छोलदारी से बाहर निकल गया। अब अफ़सर साहब के होश ठिकाने हुए। बिछावन से उठे, बन्दूक संभाली; बाहर निकले और बिजली की लालटेन लेकर बनमानुस को तलाश करने लगे। लेकिन वह वहां कहाँ था। मगर इससे ज्यादा ताज्जुब की बात यह थी कि उस संतरी का भी कहीं पता न था, जो पहरा दे रहा था ।

क्रमशः...

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